दोस्तो, आज हम Indian education और NPE -2020 के बारे में चर्चा कर रहे हें। और आज का विषय –Indian Education and Expectations from NPE-2020 — ‘भारतीय शिक्षा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 से आशाऐं ‘ है। प्राचीन समय से ही भारत में शिक्षा का बहुत महत्त्व रहा है । प्राचीन शिक्षा शास्त्रियों का मानना था कि विद्यााध्ययन का प्रयोजन अपना तथा मानव समाज का कल्याण करना और वर्तमान ज्ञान में वृद्धि के लिए प्रयत्न करना है। सेवा, त्याग और निस्वार्थता के आदर्श केवल वेद-शास्त्रों के विद्यार्थियों के लिए ही नहीं थे, अपितु शिल्प तथा चिकित्साशास्त्र आदि की शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों से भी ये अपेक्षा थी, कि कर्मसिद्धी या अर्थसिद्धि करते हुए सबके हित का ध्यान रखें ।
Indian Education and Expectations from NPE-2020
भारतीय शिक्षा के संबंध में ए एस आल्टेकर ने लिखा —
“ भारत में शिक्षा को सदैव प्रकाश और शक्ति का स्रोत माना गया है, जो कि हमारे शारीरिक, मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्तियों और उपकरणों के प्रगतिशील और समन्वित विकास के द्वारा हमारी शक्ति को रूपांतरित करती है, और श्रेष्ठ बनाती है ।”
वर्तमान में हमारे देश की शैक्षिक विचारधारा और उसका व्यवहारिक पक्ष अन्य देशों की शैक्षिक विचारधारा से कहीं न कहीं प्रभावित हुआ है। अतः हमारी शिक्षा का व्यवहारिक पक्ष, सैद्धांतिक पक्ष विधियाँ, पुस्तकें, शैक्षिक समस्याओं का समाधान तथा शिक्षा नीति प्रमुख रूप से विदेशों के द्वारा थोपी हुई मालूम पड़ती है।भारत में अंग्रेजी भाषा और आधुनिक शिक्षा का जनक लार्ड मैकाले को माना जाता है। 2 फरवरी 1835 को लार्ड मैकाले ने अपना प्रसिद्ध स्मरण पत्र ( मिनट्स ) प्रस्तुत किया था । इसने भारत में आधुनिक ब्रिटिश शिक्षा की नींव रखी थी।
मैकाले ने अपने विवरण पत्र से अंग्रेजी द्वारा पश्चिमी सभ्यता को हमारे देश पर थोपने का प्रयास किया , तथा वह इसमें काफी हद तक सफल भी रहा । जिस प्रकार जो पौधा किसी विशेष जलवायु में ही उगता है . वह विषम जलवायु में नहीं पनप सकता। उसी प्रकार किसी देश विशेष के लिए विकसित विचारधारा दूसरे देशों के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकतीं ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जो शिक्षा नीतियां आयीं वह उतनी उपयोगी नहीं रहीं. जितनी आवश्यकता थी। इसलिए भारतीय शिक्षा सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रही है । इसके अतिरिक्त भारतीय शिक्षा के विकास में आर्थिक सुविधाएं अधिक बाधक रहीं । शिक्षा आयोगों व समितियों ने आर्थिक पक्ष को अधिक ध्यान नहीं दिया। और जो धन शिक्षा के लिए आवंटित हुआ वह अधिकांश भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। अतीत में भारतीय शिक्षा में जो भी सुधार एवं परिवर्तन हुए वह अधिकांश उन महापुरुषों की देन रहे , जिन्होंने कभी अध्यापन कार्य नहीं किया । फलस्वरूप यह सुधार अधिक प्रभावशाली व स्थायी नहीं रह सके । वास्तव में शिक्षा की समस्याओं को शिक्षक ही बेहतर ढंग से समझ सकता है , क्योंकि वह धरातल पर उन असल समस्याओं के साथ शिक्षण करता है । इसके अलावा हम अभी तक शिक्षा के अंतर्गत मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर बल देते रहे ,परंतु अब ये आवश्यकता है कि हम शिक्षा के सिद्धांतों तथा शिक्षण सिद्धांतों का नए सिरे से प्रतिपादन करें । जिससे शिक्षा के सैद्धान्तिक तक व व्यवहारिक पक्ष को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति -२०२० से उम्मीदें -Expectations from National Education Policy-2020
राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 का मसौदा डॉ के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में तैयार किया गया है । ये शिक्षा नीति प्राचीन भारतीय ज्ञान और विचारों की समृद्ध परंपरा के आलोक में तैयार की गई है । ये शिक्षा नीति सतत विकास एजेंडा -2030 के लक्ष्य 4 ( एसडीजी 4 )में परिलक्षित वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा को ध्यान में रखकर प्रतिपादक की गई है । इस एजेंडा के अनुसार विश्व में 2030 तक “सभी के लिये समावेशी और समान गुणवत्ता शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन सचिव पर्यंत शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने का लक्ष्य है । ” हम कुछ nep 2020 highlights देखते हैं।
NPE-2020 के मूलभूत सिद्धांत
इस शिक्षा मूलभूत सिद्धांत जो बड़े स्तर पर शिक्षा प्रणाली और साथ ही व्यक्तिगत संस्थानों दोनों का मार्गदर्शन करेंगे ये है :—-
- हर बच्चे की विशिष्ट क्षमताओं की स्वीकृति, पहचान और उसके विकास हेतु प्रयास करना— शिक्षकों और अभिभावकों को इन क्षमताओं के प्रति संवेदनशील बनाना जिससे वे बच्चों की अकादमिक और अन्य क्षमताओं में उनके सर्वांगीण विकास पर पूरा ध्यान दें ।
- बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान को सर्वाधिक प्राथमिकता देना — जिससे सभी बच्चे कक्षा तीन तक साक्षरता और संख्याज्ञान जैसे सीखने के मूलभूत कौशलों को हासिल कर सकें ।
- लचीलापन — ताकि शिक्षार्थियों में उनके सीखने के तौर तरीके और कार्यक्रम को चुनने की क्षमता हो और इस तरह वे अपनी प्रतिभा और रूचियों के अनुसार जीवन में अपना रास्ता चुन सकें ।
- कला और विज्ञान के बीच, पाठ्यक्रम और पाठ्येतर गतिविधियों के बीच, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं आदि के बीच, कोई स्पष्ट अलगाव न हो, जिससे ज्ञान क्षेत्रों के बीच हानिकारक ऊँच-नीच और परस्पर दूरी एवं असंबद्धता को दूर किया जा सके ।
- सभी ज्ञान की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए एक बहु विषयक दुनिया के लिए विज्ञान ,सामाजिक विज्ञान ,कला, मानविकी और खेल के बीच एक बहु विषयक और समग्र शिक्षा का विकास ।
- अवधारणात्मक समझ पर ज़ोर, न कि रटंत पद्धति और केवल परीक्षा के लिए पढ़ाई ।
- रचनात्मकता और तार्किक सोच — तार्किक निर्णय लेने और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिये ।
- नैतिकता, मानवीय और संवैधानिक मूल — जैसे सहानुभूति, दूसरों के लिए सम्मान, स्वच्छता, शिष्टाचार, लोकतांत्रिक भावना, सेवा की भावना, सार्वजनिक संपत्ति के लिए समान वैज्ञानिक चिंतन, स्वतंत्रता, जिम्मेदारी, बहुलतावाद, समानता और न्याय ।
- बहु-भाषिकता और अध्ययन-अध्यापन के कार्य में भाषा की शक्ति को प्रोत्साहन
- जीवन कौशल- जैसे आपसी संवाद, सहयोग, सामूहिक कार्य और लचीलापन
- सीखने के लिए सतत मूल्यांकन पर ज़ोर– इसके बजाय की साल के अंत में होने वाली परीक्षा को केंद्र में रखकर शिक्षण हो जिससे कि आज की कोचिंग संस्कृति को ही बढ़ावा मिलता है ।
- तकनीक के यथासंभव उपयोग पर ज़ोर– अध्ययन-अध्यापन कार्य में, भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने में, दिव्यांग बच्चों के लिए शिक्षा को सुलभ बनाने में और शैक्षणिक नियोजन और प्रबंधन में ।
- सभी पाठ्यक्रम, शिक्षण-शास्त्र और नीति में स्थानीय संदर्भ की विविधता और स्थानीय परिवेश के लिए एक सम्मान, हमेशा ध्यान में रखते हुए की शिक्षा एक समवर्ती विषय है ।
- सभी शैक्षिक निर्णयों की आधारशिला के रूप में पूर्ण समता और समावेशन— साथ ही शिक्षा को लोगों की पहुँच और सामर्थ्य के दायरे में रखना — ये सुनिश्चित करने के लिए कि सभी छात्र शिक्षा प्रणाली में सफलता हासिल कर सकें ।
- स्कूली शिक्षा से उच्चतर शिक्षा तक सभी स्तरों के शिक्षा पाठ्यक्रम में तालमेल, प्रारंभिक बाल अवस्था देखभाल व शिक्षा से,
- शिक्षकों और संकाय को सीखने की प्रक्रिया का केंद्र मानना — उनकी भर्ती और तैयारी की उत्कृष्ट व्यवस्था, निरंतर व्यावसायिक विकास, और सकारात्मक कार्य वातावरण और सेवा की स्थिति ।
- शैक्षिक प्रणाली की अखंडता पारदर्शिता और संसाधन कुशलता — ऑडिट और सार्वजनिक प्रकटीकरण के माध्यम से सुनिश्चित करने के लिए एक हल्का लेकिन प्रभावी नियामक ढांचा साथ ही साथ स्वायत्तता, सुशासन और सशक्तिकरण के माध्यम से नवाचार और आउट-ऑफ-द-बॉक्स विचारों को प्रोत्साहित करना ।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और विकास के लिए उत्कृष्ट स्तर का शोध
- शैक्षिक विशेषज्ञों द्वारा निरंतर अनुसंधान और नियमित मूल्यांकन के आधार पर प्रगति की सतत समीक्षा।
- भारतीय जड़ों और गौरव से बंधे रहना, – और जहाँ प्रासंगिक लगे वहाँ भारत की समृद्ध और विविध प्राचीन और आधुनिक संस्कृति और ज्ञान प्रणाली को और परंपराओं को शामिल करना और उससे प्रेरणा पाना